Friday, December 25, 2009

किस ने बनाया आंदोलन को आतंक

हमारे देश में कुछ आंदोलन धर्म, जाति, और अधिकार की लड़ाई से शुरू होते हैं धीरे धीरे ये कब आंदोलन से आतंक बन जाते हैं ख़ुद आंदोलन करने वाले भी नही समझ पाते, और भ्रम में रहते हैं कि हम हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। वर्चस्व, सत्ता और दौलत की अंधी दौड़ में हमारे देश के कुछ निर्धन और युवा आंख मूंद कर बिना सोचे समझे उस लड़ाई का अंग बन जाते हैं और अपना हित साधने वाले उनका नाजायज़ फायदा उठाते हैं ।

जो लड़ाई निर्दोशों का लहू बहा कर की जाये वो आज़ाद भारतियों को कभी भी स्वीकार्य नहीं हो सकती, चाहे वो राजनैतिक स्तर पर हो या धार्मिक स्तर पर आतंक आतंक है, उसे किसी भी "वाद" या "विवाद" का नाम दिया जाये ।


माओवाद और नक्सलवाद

सरकार देश के 14 राज्यों के 165 जिलों में ही माओवादियों की मौजूदगी की बात स्वीकारती है, लेकिन सीआरपीएफ के आंतरिक मूल्यांकन के मुताबिक ‘रेड ब्रिगेड’ 22 राज्यों के 186 जिलों में पहुंच बना चुकी है। और 75 जिलों में बड़ी ताकत बन चुके हैं। और इस श्रेणी में सबसे नया राज्य गुजरात है जिसमें उन्होंने पैर फैलाना शुरू कर दिया है
सुरक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक माओवादी इस समय देश के 22 राज्यों के 186 जिलों में सक्रिय हैं, इसमें से 75 जिलों में ये बड़ी ताकत बनते हुए सुरक्षा बलों को खासा नुकसान पहुंचा चुके हैं। पिछले छह महीनों में देश में हुई हिंसा की 900 घटनाओं पर नजर डालें तो इस अवधि में 190 सुरक्षाकर्मी और 41 अर्धसैनिक बलों के जवान इनसे लड़ते हुए मारे गए हैं। दूसरी ओर सुरक्षा बलों ने इस दौरान 262 विद्रोहियों को मार गिराया है।


नक्सल आंदोलन का जन्म पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में हुआ था, जहां 1967 में कुछ माकपा समर्थकों ने नक्सलबाड़ी में चारू मजूमदार और कानू सान्याल के नेतृत्व में भूमिहीन मजदूरों और आदिवासियों के आंदोलन के रूप में शुरुआत कर जमींदारों के खिलाफ विद्रोह किया। मजूमदार ने चीन के माओत्से तुंग की बहुत प्रशंसा की और वकालत की भारतीय किसान और निम्न वर्ग को उनके नक्शेकदम पर चलना है बाद में इस आंदोलन से प्रेरित कई नए संगठन अस्तित्व में आए। भूख, ग़रीबी, मूलभूत सुविधाओं, के लिये और अत्याचारों के ख़िलाफ जो आंदोलन शुरू हुआ था धीरे धीरे आतंक और धन उगाही खेल बनता गया।

नेपाल पर पूरी तरह से राजनैतिक पैठ बना चुके माओवादी दिन ब दिन ताकत बढ़ाते जा रहे हैं। माओवादियों ने शुरुआत तीर-कमान से की, लेकिन अब इनके पास एके-47, कार्बाइन और सेल्फ लोडिंग राइफल जैसे आधुनिक हथियार हैं, ख़बर ये भी है कि इनको हथियार चीन की सहायता से मिल रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में इस आतंक के खेल में आम नागरिकों, सुरक्षा बलों और नक्सलियों को मिलाकर लगभग 4500 लोग मारे जा चुके हैं, एक अनुमान के मुताबिक देश के 180 से अधिक जिलों में 10 हजार सशस्त्र विद्रोही सक्रिय हैं। आंध्रप्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार और महाराष्ट्र के गरीब आदिवासी इलाकों में इनकी पैठ अच्छी खासी है।

माओवादियों का हिंसा प्रेम
जिस तरह दिल्ली से आ रही राजधानी एक्सप्रेस को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में पांच घंटे तक बंधक बना कर रखा। उस समय ट्रेन में 1200 यात्री थे। राजधानी एक्सप्रेस देश की सबसे प्रतिष्ठित ट्रेन है। ( बंधक ट्रेन को छुड़वाने के लिए पांच घंटे तक सुरक्षा बलों का नहीं पहुंच पाना सुरक्षा के बारे में हमारी आंतरिक तैयारियों की स्थिति को जाहिर करता है ), आय दिन रेल पटरियों को नुकसान पहुंचा कर यात्रियों की जान से खिलवाड़ करना, पुलिस और सेना के जवानो की जान ले लेना, सामूहिक नरसंहार, झारखंड में पुलिस इंस्पेक्टर फ्रांसिस इंदुवार का अपहरण के बाद सिर कलम कर दिया जाना या माओवादी बंद के दौरान एक फुटबॉल मैच के बाद पुरस्कार वितरण के समय गोलियां बरसा कर तीन लोगों को मौत के घाट उतार देना या बंगाल में लालगढ़ तथा जंगल महाल के अन्य इलाकों में करीब हर रोज सीपीआई (एम) कार्यकर्ताओं को गोली से उड़ा देना हिंसा के ऐसे रूप हैं ,जो उनके इरादों को उजागर कर देता है।
इन माओवादियों का माओ से, उनके नाम के इस्तेमाल के सिवा शायद ही कोई संबंध है। इनका लेफ्ट से या कम्युनिस्टों से भी नाम का ही संबंध है। उनकी राजनीतिक प्रैक्टिस हमारे देश में वामपंथी व जनतांत्रिक शक्तियों के आड़े ही आती है। इकलौते व असली वामपंथ होने के दावे को वे हथियारों के बल पर सही साबित करने की कोशिश करते हैं।

माओवादियों की काली कमाई
देश भर में सरकार विरूद्ध अभियान चलाने के लिए और लाखों की संख्या में कार्यरत "कामरेडों" के भरण पोषण और हथियारों के लिए माओवादियों को पैसा कहाँ से मिलता है?
कुछ समय पहले केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा था कि माओवादियों को देश और विदेशों और कुछ संस्थाओं से पैसा मिल रहा है. माओवादियों को हर वह सुविधा उपलब्ध हो रही है जिसकी उन्हें जरूरत होती है. वह चाहे पैसे हों या फिर हथियार।
एक जानकारी के अनुसार चीन से माओवादियों को हथियारों की आपूर्ती हो रही ।
इसके अलावा देश भर से भी हफ्ता वसूली के माध्यम से माओवादी धन अर्जित करते हैं, अनुमान के अनुसार फिलहाल देश भर से होने वाली माओवादी हफ्ता वसूली करीब 1600 करोड़ से अधिक है, लेकिन विगत कुछ वर्षों में माओवादियों द्वारा अपनी "दर" बढा दिए जाने से यह रकम और भी बड़ी हो सकती है ।

झारखंड और छत्तीसगढ की खानों से माओवादियों को सर्वाधिक कमाई होती है. एक अखबार के अनुमान के अनुसार कोयला और लौह अयस्क की खानखर्च का 25% हिस्सा माओवादियों को जाता है. इसके अलावा बॉक्साइड खनन का प्रति टन 10 रूपया और कोयले की खनन का प्रति टन 12 रूपया माओवादियों के हिस्से जाता है।
इसके अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण कोंट्राक्ट का 2%, रेलवे पटरियों के निर्माण और रखरखाव कोंट्राक्ट का 5%, रेल लाइन बिछाने के कोंट्राक्ट का 10% हिस्सा भी "हफ्ता वसूली" के तहत आता है।

पेट्रोल पम्प मालिकों से भी हफ्ता वसूली की जाती है और बड़े पम्प 25000 रूपए वार्षिक तक चुकाते हैं. यह बड़ी आमदनी की बात है. इसके अलावा अन्य व्यापारियों और छोटे उद्यमियों से होने वाली नियमित "वसूली" अलग से जोड़ी जाए तो यह रकम और भी अधिक बढ जाती है. और अब पशुपतिनाथ मंदिर और अन्य कई मंदिरों के चढ़ावे और संपत्ती पर भी इनकी नीयत लग चुकी है, जिसका उदाहरण हाल ही में सितम्बर माह में भारतिय मूल के दो पुजारियों की पिटाई है ( सदियों की परंपरा अनुसार पशुपतिनाथ मंदिर में भारतीय पुजारी ही पूजा करते हैं, अब माओवादी इस परम्परा को तोड़ देना चाहते हैं ) अब कुछ मन्दिर उनकी बापोती और कमाई का साधन बनते जा रहे हैं जो चिंता का विषय है।


शायद हम नेपाल और चीन से आने वाले ख़तरों से अंजान बने बैठे हैं।

कश्मीर के एक हिस्से पर चीन का भी कब्ज़ा है, लेकिन हम इस कब्ज़े पर कितने गम्भीर हैं ? भारतीय सीमाओं से छेड़छाड़ से कितने भारतीय परिचित हैं ? चीन तिब्बत की दुर्गम वादियों में हज़ारों कठनाईयों के वावजूद चीन-तिब्बत रेलवे लाईन बिछा चुका है, और तिब्बत की आज़दी के सपने देखने वालों को कुचलता जा रहा है। अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ढोक चुका है, हमारे बाज़ार में अपने सस्ते और घटिया उत्पादों से घुसपैठ कर चुका है, हथियारों को भारतीय सीमा के भीतर पहुंचा रहा है, और भारत के लिए संभावित खतरा बन चुका है, भारत की सीमाओं मे आतंकियों के प्रवेश का सबसे आसान रास्ता भी चीन से और नेपाल की खुली सीमा से हो कर आता है।





चीन के तिब्बत के रास्ते नेपाल और भारत (अरुणाचल) की और बढ़ते कदम चिंता का विषय है, हथियारों को भारतीय सीमाओं के अंदर पहुंचाने के साथ-साथ चीन हमारी व्यापारिक प्रणाली पर हमला कर चुका है।
हमारी बात :


ज़रा गौर करें जो नफरत फैला रहे हैं कितने मज़े से सत्ता और भोग विलास के साधनों का उपभोग कर रहे हैं और आप को अगली पंक्ती की सबसे पहले मरने वाली पैदल सेना (भीड़) की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। आप लड़ें झगड़ें वो तो सुख से ही रहेंगे बस उत्तेजक भाषण देंगे और नफरत की आग बांट जायेंगे जो समाज को झुलसाती रहेगी, उनके छल को समझें ।
विदेशी ताकतें अपना काम साम, दाम, दंड, भेद, से कर रही हैं, हमें अपने कर्म और कर्तव्य को समझना होगा।

जो लोग दूसरों के अधिकारों का हनन करते हैं,सभ्यता छोड़ने लिये उकसाते हैं,बेगुनाह और मासूम लोगों को मारते हैं या उनको मारने की वजह बनते हैं या उनका साथ देते हैं, न उनका कोई धर्म है, न मज़हब है और न ही इंसान कहलाने लायक हैं, फिर वो चाहे किसी भी "वाद" या "विवाद" के उपासक हों ।

( By: Team - KUCH TO BADLEGA - Gazi, Shaifullah)

Tuesday, December 08, 2009

अब मीनार पर तकरार



नवंबर 2009 में स्विज़रर्लैंड में एक प्रस्ताव ला कर वोटिंग करवाई गई ये वोटिंग किसी राजनैतिक पार्टी के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि मुस्लिम इबादतगाहों यानि मस्जिदों के ख़िलाफ़ करवाई गई, जिससे मस्जिदों पर मीनारों के निर्माण पर रोक लगाने का समर्थन हासिल किया जा सके। यहां पहले हम आप को ये बता दें कि स्विज़रर्लैड में सिर्फ चार ही मस्जिदों में मीनार हैं, ये विवाद सन 2000 में शुरू हुआ था जिसमें दो मस्जिदों पर मीनार के निर्माण की इजाज़त मांगी गई थी, और मीनारों के निर्माण की इजाज़त नहीं दी गई ।
ये वोटिंग SVP स्विस पीपुल्स पार्टी ने करवाई जिसमें 53% लोगों ने मिनारों के निर्माण के ख़िलाफ वोट किये, वोटिंग से पहले ये आंकड़ा 37% था SVP स्विस पीपुल्स पार्टी स्विट्जरलैंड की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है।
हर सार्वजनिक स्थानों पर बेनर, पोस्टर और होल्डिंग्स लगाकर और स्विस नागरिकों को भड़का कर इस प्रस्ताव  पर स्विस पीपुल्स पार्टी ने वोटिंग करवाई






प्रस्ताव के समर्थक क्या कहते हैं :

"मीनारों का निर्माण स्विस लोकतन्त्र के ख़िलाफ है। मीनारों से शरिया विचारधार को बढ़ावा मिलता है इससे शरियत लागू करने की मांग बढ़ जायेगी। ये मीनारें धार्मिक प्रतीक से कहीं ज़्यादा हैं। इनके बनने से ये संदेश जायेगा कि यहां इस्लामी कानून मान्य है, जो स्विस लोकतन्त्र के अनुरूप नहीं है।"
: स्विस पीपुल्स पार्टी, एवं समर्थक

"हम नहीं चाहते कि इस सदी में भी हमारी सड़कों पर कोई महिला हिजाब में निकले हम खुले दिमाग़ वाले लोग ( Open minded people ) हैं।"
: अलरिच स्कोलर, केम्पेन लीडर पीपुल्स पार्टी

"देश में मुस्लिमों से ज़्यादा जन्संख्या ईसाइअयों की है, लेकिन हमने तो कभी इस तरह की मांग नहीं की फिर मुस्लिम समुदाय के लोग बार बार मीनार की ऊंचाई बढ़ाने की मांग क्यूं कर रहे हैं।"
:जान वाल्ट - समर्थक स्विस पीपुल्स पार्टी




"समुदाय में किसी भी तरह का विभाजन करने के लिये यह फैसला नहीं लिया गया हैअपनी संस्क्रति बचाने के लिये नागरिकों की ये मुहिम है।"
:नवी पिल्लेइ,हाई कमिशनर ह्यूमन राईट्स यू एन

"देश में ज्यादा संख्या में मीनारों के बनने से स्विज़रर्लैंड की सांस्क्रतिक विरासत प्रभावित होगी विरोध के प्रगट करने के लिये इन्होंने मतदान का सहारा लिया है।"
: फिलिप डी वींटर, प्रमुख ब्लमास बिलैंग


"मतदान के रिज़ल्ट से ये साफ हो गया है कि स्विस नागरिक अपने देश में मीनार और शरिया कानून नहीं चाहते हैं।"
: वाल्टर वोबमेन, स्विस पीपुल्स पार्टी

ईसाई समुदाय का तर्क है कि देश की आबादी में से महज़ 4.5 % हिस्सा मुस्लिम समुदाय का है। इसलिए ज्यादा मस्जिदों और मीनारों का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए। और मीनारों से देश की सांस्क्रतिक विरासत को ख़तरा है।

सरकार क्या कहती है :

स्विस सरकार इस प्रस्ताव के ख़िलाफ है सरकार ने लोगों से इस प्रस्ताव के ख़िलाफ मतदान करने की अपील की है। सरकार का मानना है कि इससे मुस्लिमों के साथ भेदभाव बढ़ेगा। इस से समाज में तनाव बढ़ेगा। यही नहीं मुस्लिम देशों के साथ स्विस सरकार के रिश्तों पर भी असर पढ़ेगा ।
यहां आपको ये बता दें कि हर साल स्विज़रलैंड 100 करोड़ के करीब कमाई मुस्लिम देशो से करता है , और हर साल करीब 1,70,000 मुस्लिम पर्यटक यहां घूमने आते हैं।

इनकी बात भी सुनिये :

"इसमे कोई संदेह नहीं कि दूसरे देशों की तरह यहां भी मुस्लिमों के साथ भेदभाव पूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है।"
: कार्ल ब्लिट, विदेश मंत्री ई यू प्रेसिडेंट

"ये ख़बर सुन कर मैं हैरत में हूं आख़िर ऎसा कैसे हो सकता है । मुस्लिमों को भी बराबरी का हक़ मिलना चाहिये। स्विस सरकार को चाहिये कि वो इस दिशा में सही कदम उठाए। वरना बढ़ा विवाद पैदा हो सकता है।"
:बर्नाड किचनर, विदेश मंत्री, फ्रांस

"मीनारों पर प्रतिबंध लगाना मुसल्मानों की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है । मुस्लिम समुदाय का नाराज़ होना जायज़ है।"
:एमनेस्टी इंटरनेशनल मानवाधिकार संगठन

"हाल ही में बनाए गये गुरुद्वारे और सर्बियाई आर्थोडोक्स चर्च इस बात का सबूत हैं कि यहां इस्लाम के साथ भेदभाव किया जा रहा है।"
:मुस्लिम संगठन स्विज़रलैंड

"मेरे ख़्याल से यह इस्लाम धर्म के ख़िलाफ़ है।इसके पीछे नस्लभेदी इरादे हैं। मीनारें कितनी ही चीज़ो की प्रतीक हैं। साफ दिखता है उनके इस प्रस्ताव का मतलब क्या है। जनमत संग्रह के परिणामों से ये ज़ाहिर हो गया है कि मुसल्मानों पर हमले हो सकते हैं और उनके अधिकारों पर पाबंदी लग सकती है। इस तरह मुसलमानों  की  धार्मिक स्वतंत्रता पर पाबंदी का प्रयास किया जा रहा है।"
: सईदा कालर मस्साहली, संस्थापक, फोरम फार प्रोग्रेसिव इस्लाम

"कुछ लोगों ने हमारी एसोसिएशन के दफ्तर में पत्थर और बोतलें फेकीं, और हमारे दरवाज़ों पर सुअर की गर्दन काट कर लटका दी गईं। लेकिन हम सब्र से काम लेने वाले हैं।"
: मुस्तफा करहान, टर्किश कल्चरर्ल एसोसिएशन, वेनगन

"वो हमें आतंकवादी कहते हैं, तालीबानी कहते हैं, और भी न जाने क्या क्या नाम देते हैं। ये हमारा भी मुल्क है हम इस मुल्क से प्यार करते हैं। हमारे बच्चे यहां पैदा हुए, हम उनसे ज्यादा इस मुल्क से प्यार करते हैं जो हम पर इल्ज़ाम लगाते हैं क्योंकि उनमे से ज्यादातर लोग जो खुद को स्विस कहते हैं अल्बेनियन हैं, "
: मुतालिप करादेमी, प्रेसिडेंट इस्लामिक कम्यूनिटी, लेगेन्थल


अब हमारी सुनिये :

सिर्फ मीनार इस्लाम और शरिया का प्रतीक नहीं है, वो मस्जिद की वास्तुकला का एक हिस्सा मात्र है। मीनारों की ऊंचाई सिर्फ इसलिए होती है कि अज़ान की आवाज़ दूर तक जाए। जो लोग अपने आप को खुले दिमाग़ वाला (Open minded ) कह रहे हैं हमें लगता है कि उनका दिमाग़ ही चल गया है। लोकतन्त्र (Democracy) की बात तो करते हैं पर लोकतन्त्र कहां है जिसमें आम इंसान अपने आप को आज़ाद और महफूज़ समझ सके।

दुनिया के किसी देश में ऎसा कानून नहीं जिसमें शरिया कानून का कोई हिस्सा मौजूद न हो। और शरिया कानून के नाम पर इस्लाम को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। जैसे क़त्ल करने की सज़ा मौत, हर देश में कानून है। आज जो बलात्कारियों को मौत की सज़ा की मांग उठा रहे हैं क्या वो जानते हैं कि इस्लामी शरिया में ये कानून पहले से ही मौजूद है, और यहां तो मामला सिर्फ मीनार बनाने का है न कि शरिया कानून लागू करने का।

जो लोग मीनारों के निर्माण पर रोक लगाने के लिये तर्क दे रहे हैं वो भेदभाव का गंदा खेल खेलने के सिवा कुछ नहीं कर रहे।




स्विज़रलैंड में 157 मस्जिदें हैं लेकिन मीनार सिर्फ 4 मस्जिदों पर हैं ।स्विज़र्लैड की आबादी लगभग 77 लाख है, जिसमें मुस्लिम आबादी लगभग 4.5 % है।जिस देश में एक समुदाय जिसकी आबादी 4.5 % हो वहां इस तरह के मतदान का क्या मतलब है, क्या ये मतदान एक तरफा नहीं है ?


क्या किसी देश में एक समुदाय की जनसंख्या कम हो तो क्या उसे अपनी संस्क्रति के साथ जीने का हक़ नहीं ? अरब के अंदर लाखों ईसाई हैं जो पीढियों से ईसाई हैं और बिना किसी परेशानी के अपनी संस्क्रति के साथ जी रहे हैं।

अल्लहम्दोलिल्लाह इस्लाम आज दुनिया में सबसे तेज़ी से फेल रहा है, ये इस्लाम में दाख़िल हो रहे इंसानों को रोकने की कोशिश है ताकि लोग इस्लाम के ख़िलाफ हो जायें और इस्लाम की तरफ न जायें। क्या ये लोग इस तरह से इस्लाम को रोक सकते हैं ?

हमारे ख़्याल से कभी नहीं आप क्या कहते हैं ?


By : Gazi, Shaifullah & Shameem

Saturday, December 05, 2009

अल्लाह का गणित सबसे आला है ।




हम अल्लाह से ही मदद मांगते है

और वो ही हमें रास्ता दिखाने वाला है




काबा--ख़ाना दुनिया में सबसे मुकद्दस (पवित्र) जगह है जो ज़मीन में सबसे पहले बनाई गई ।
दुनिया की ज़मीन की नाभी दुनिया की धूरी काबा--ख़ाना है । काबा--ख़ाना की नींव हज़0 आदम अ00 ने रखी थी, और रिवायतों के अनुसार हज़0 आदम अ00 ने कई हज किये यानि जब से दुनिया वजूद में आई उस वक्त से काबा--ख़ाना की ज़मीन को अल्लाह-रब्बुल-आल-अमीन ने मुकद्दस (पवित्र) क़रार दिया है ।
जब हज़0 इब्राहीम अ00 को काबा--ख़ाना बनाने का अल्लाह ने हुक्म दिया तब काबा एक छोटे से टीले की शक्ल में था, तब हज़0 इब्राहीम अ00 ने अल्लाह से पूछा कि ये तो मुझे मालूम है कि काबा यहां बनाना है लेकिन इसकी लम्बाई और चौड़ाई क्या होगी तब अल्लाह ने बादल का साया कर दिया और फरमाया कि जहां जहां इस बादल का साया है वहां निशान लगा लो, जब हज़0 इब्राहीम अ00 ने निशानों पर खुदाई की तो उन्हें हज़0 आदम अ00 की बनाई हुई नींव मिली और उसी नींव पर काबा--ख़ाना को हज़0 इब्राहीम अ00 ने बनाया ।



दुनिया की ज़मीन की नाभी दुनिया की धूरी काबा--ख़ाना है आप सब मालुमात के लिये ये वीडियो देखें..!






By : Gazi & Shaifullah



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